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रांची/डेस्क: शराब का सेवन आजकल दुनिया भर में एक सामान्य बात हो चुकी है लेकिन क्या आप जानते है कि प्राचीन भारत में भी शराब के कई प्रकार हुआ करते थे, जिनके बारे में वेदों और ऐतिहासिक ग्रंथों में भी जिक्र मिलता हैं? आजकल बाजार में बियर, वाइन और स्प्रिट जैसी शराब की वैराइटीज़ का बोलबाला है लेकिन प्राचीन समय में एक खास शराब, जिसे 'सोम रस' कहा जाता था, उसका बहुत महत्व था. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक, सोम रस केवल एक शराब नहीं थी बल्कि यह एक आध्यात्मिक पेय था, जिसे पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों में इस्तेमाल किया जाता था.
प्राचीन भारत का रहस्यमय पेय
ब्रिटानिका के अनुसार, सोम रस को बनाने का तरीका बेहद दिलचस्प था. इसे एक खास पौधे के डंठल को पत्थरों के बीच दबाकर निकाला जाता था फिर इस रस को भेड़ के ऊन से फिल्टर किया जाता था. इसके अलावा सोम के अलावा और भी कई प्रकार की शराब प्राचीन भारत में बनती थी, जैसे मेधका, प्रसाना, मैरेया, आसव, अरिष्ट, मधु और सुरा.
कौटिल्य ने बताई थी 12 प्रकार की शराब
सम्राट अशोक के मंत्री कौटिल्य (चाणक्य) ने अपनी प्रसिद्ध किताब 'अर्थशास्त्र' में शराब की 12 अलग-अलग वैराइटीज़ का जिक्र किया था. इनमें सुरा भी शामिल थी, जिसे पानी और चावल के आटे के मिश्रण को फर्मेंट करके तैयार किया जाता था. आजकल हम जिन शराबों का सेवन करते है, उनकी शुरुआत कई सदियों पहले इन प्राचीन पेयों से हुई थी, जिनका स्वाद और निर्माण तरीका काफी अलग था.