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रांची/डेस्क: आपने यह बात तो सुनी ही होगी कि एक कुता हमेशा अपने मालिक के प्रति वफादार रहता है. वैसे भी पालतू कुत्तों को करीब-करीब सभी लोग अपने घर के सदस्य की तरह ही प्यार करते है. ऐसे ऐसे ही डॉग लवर है जिसने अपने कुत्ते के मर जाने के गम में बिल्कुल हिंदू रीति-रिवाज की तरह उसका दशकर्म किया. उसने अपने कुत्ते के कर जाने पर उसकी तेरहवीं में हजारों लोगों से ज्यादा लोगों को खाना खिलाया है.आइए आपके इस व्यक्ति और उसके पालतू कुत्ते के बारे में पूरी जानकारी देते है.
मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के सारंगपुर के पास सुल्तानिया गांव का यह मामला है. यहां एक व्यक्ति जिसका नाम जीवन नागर है. उसका पालतू जर्मन शेफर्ड कुत्ता कड़ाके की ठंड के कारण अचनाक बीमार पद गया. इसके बाद जीवन ने अपने कुत्ते का इलाज सांरगपुर में करवाया. इलाज के बाद भी जब उसके कुत्ते को राहत नहीं मिल रही थी, तब वह अपने पालतू कुत्ते के बेहतर इलाज के लिए कार से भोपाल पहुंचा. जहां इलाज के दौरान ही उसके कुत्ते की मौत हो गई.
इसके बाद जीवन अपने पालतू कुत्ते को लेकर गांव पहुंचा और उसे दफना दिया. इसके बाद उसने 13 वें दिन में मृत्यु भोज का भी आयोजन किया. इस भोज में करीब एक हजार से भी ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया. इतना ही नहीं, जीवन ने उसके कुत्ते के मौत के 10 वें दिन उज्जैन की शिप्रा नदी के किनारे दशकर्म करवाया. इसके बाद उसने अपना सिर भी मुंडवाया.
इस घटना के बाद राजगढ़ जिले में सभी लोगों के बीच पशु प्रेम के बारे में चर्चा तेज है. मिली जानकारी के अनुसार, साल 2018 में जर्मन शेफर्ड प्रजाति का यह कुत्ता जीवन ने भोपाल से ख़रीदा था. यह कुत्ता उनके परिवार का एक सदस्य बन गया था. अचानक 10 जनवरी को ठंड के कारण कुत्ते के प्लेटलेट्स घट गए. इस कारण से वह काफी बीमार हो गया. जीवन ने उसके देखभाल के लिए पूरी कोशिश की. उसने अपने कुत्ते के इलाज वही करवाया. लेकिन जब उसकी हालत ठीक नहीं हुई, तब वह उसे अपने कार से लेकर भोपाल चला गया. लेकिन वहां पशु चिकित्सालय में उसकी इलाज के दौरान ही मौत हो गई.
इसके बाद उसके मालिक जीवन नागर ने अपने कुत्ते को गांव में सम्मान के साथ दफनाया दिया. अपने कुत्ते के प्रति उसका बहुत गहरा लगाव था. ऐसे में उसने उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए अपने कुत्ते का दशकर्म किया. इसके अलावा हिन्दू, परंपरा के अनुसार, अपने कुत्ते के आत्मा के शांति के लिए अपना सिर मुंडवाया. इसके बाद 13वीं के दिन उसने करीब वक हजार लोगों से अधिक को मृत्यु भोज करवाया. जीवन के इस कदम को लेकर सभी लोग उसकी सराहना कर रहें है.