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रांची/डेस्क: दीपों के पर्व दिवाली का त्योहार पूरे भारत में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा हैं. इस दिन न केवल घरों को दीयों से सजाया जाता है बल्कि भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की उपासना कर धन, सुख और समृद्धि की कामना की जाती हैं. दिवाली की रात दीयों का जलना जहां धार्मिक आस्था का प्रतीक है, वहीं इससे एक विशेष प्रकार का काजल भी बनाया जाता है, जो परिवार के सभी सदस्यों की आँखों में लगाया जाता हैं. काजल लगाने की इस परंपरा के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण माने जाते हैं.
काजल से दूर होती है नकारात्मक शक्तियां
दिवाली पर काजल बनाने और लगाने की परंपरा सदियों पुरानी हैं. ऐसी मान्यता है कि दीये की लौ से बने इस काजल को लगाने से घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और वातावरण में सकारात्मकता आती हैं. इसे बुरी नजर और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा का प्रतीक भी माना जाता हैं. इसके अलावा घर की तिजोरी, अलमारी और खाना बनाने के स्थान पर भी यह काजल लगाने की परंपरा है, जिससे यह माना जाता है कि इससे परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और समृद्धि आती हैं.
प्रदूषण से सुरक्षा
दिवाली पर पटाखों और अन्य कारणों से प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता हैं. ऐसे में आंखों को प्रदूषण से बचाने की जरूरत होती हैं. परंपरागत रूप से बनाए गए इस काजल में Anti-Inflammatory और Anti-Bacterial गुण होते है, जो प्रदूषण से उत्पन्न जलन और एलर्जी से आंखों को राहत दिलाने का काम करते हैं. इस काजल में ठंडी हवाओं और धूल के कणों से भी आंखों की सुरक्षा होती हैं.
काजल बनाने का तरीका
1. सबसे पहले एक दीये को सरसों या तिल के तेल से भरें और उसमें एक रूई की बत्ती लगाकर प्रज्वलित करें.
2. इसके बाद दीये की लौ पर एक प्लेट तिरछा करके रखें ताकि कालिख जमा हो सके.
3. प्लेट पर जमा हुई कालिख को एकत्रित करें और उसमें एक बूंद घी मिलाकर अच्छी तरह मिक्स कर लें. इससे काजल तैयार हो जाता हैं.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय
कई स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी मानते है कि दिवाली पर इस काजल का उपयोग आंखों को सुरक्षित रख सकता हैं. इसके प्राकृतिक तत्व प्रदूषण से होने वाले दुष्प्रभाव को कम करने में सहायक हैं. दिवाली की रात दीये से बना काजल एक पुरानी परंपरा है, जो धार्मिक और वैज्ञानिक कारणों से समृद्ध हैं. यह काजल न केवल बुरी नजर से रक्षा करता है बल्कि दिवाली के दौरान बढ़े प्रदूषण से भी आंखों की सुरक्षा करता हैं.