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रांची/डेस्कः ओडिशा के पुरी सहित सभी हिस्सों में आज से जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू हो चुकी है रथ यात्रा का आयोजन प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के शुल्क पक्ष की द्वितीय तिथि को होता है. इस दिन भगवान जगन्नाथ महाप्रभु अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर विराजते हैं और रथ में सवार होकर अपने मौसी के घर जाते हैं. सनातन धर्म में रथ यात्रा का खास महत्व है. मान्यताओं के मुताबिक, रथयात्रा निकालकर श्री जगन्नाथ महाप्रभु को प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर पहुंचाया जाता है यहां भगवान 7 दिनों तक आराम करते हैं इस बीच गुंडिचा माता मंदिर में खास तैयारियां की जाती है. इंद्रद्युम्न सरोवर से मंदिर की साफ-सफाई के लिए जल लाया जाता है. इसके पश्चात श्री जगन्नाथ भगवान की जगन्नाथ मंदिर में वापसी के लिए यात्रा शुरू होती है. रथ यात्रा की सबसे खास महत्व यह है कि यह पूरे भारतवर्ष में एक महोत्सव की तरह निकाली जाती है.
बता दें, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को हर वर्ष रथ यात्रा शुरू होती है. और यह द्वितीय तिथि जो कि आज यानी 7 जुलाई को है इसलिए आज (द्वितीय तिथि) से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू हो चुकी है. रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ साल में एक बार मंदिर से निकल कर जन सामान्य के बीच जाते हैं. भगवान जगन्नाथ के रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज होता जिस पर जगन्नाथ महाप्रभु के भाई बलभद्र मौजूद होते हैं उसके पीछे पद्म ध्वज होता है जिसपर बहन सुभद्रा और सुदर्शन चक्र होते हैं और अंत में गरूण ध्वज होता है जिसपर भगवान श्री जगन्नाथ प्रभु जी विराजमान होते हैं जो सबसे पीछे चलते हैं.
अपनी मौसी के पास आखिर क्यों ठहरते है भगवान जगन्नाथ
पद्म पुराण के मुताबिक, भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई थी. उस वक्त भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने के लिए निकल पड़ते हैं. इस बीच वे अपनी मौसी के घर पर ठहरे और वे 7 दिनों तक आराम किए. मान्यता है कि तभी से भगवान जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है. इसका जिक्र ब्रह्म पुराण और नारद पुराण में भी है. मान्यताओं के अनुसार, अपने मौसी घर में ठहरने के दौरान भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ खूब पकवान खाते हैं और फिर वे बीमार पड़ जाते हैं इसके बाद उनका इलाज किया जाता है और फिर स्वस्थ होने के बाद अपने भक्तों को दर्शन देते हैं.
ओडिशा की पुरी हैं जगन्नाथ महाप्रभु की मुख्य लीला भूमि
आपको बता दें, भगवान जगन्नाथ महाप्रभु की मुख्य लीला स्थल ओडिशा की पुरी है. जिसे पुरुषोत्तम पुरी भी कहा जाता है. श्री जगन्नाथ जी स्वयं राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक हैं. यानी कि उनका स्वरूप राधा-कृष्ण को मिलाकर बना है कहा जाता है कि भगवान कृष्ण भी उनके ही एक अंश हैं. बता दें, ओडिशा में भगवान जगन्नाथ महाप्रभु उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की काष्ठ यानी कि लकड़ियों की अर्धनिर्मित मूर्तियां स्थापित की गई हैं. जिसका महाराजा इंद्रद्युम्न ने निर्माण करवाया था.