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रांची/डेस्क: आज विश्व आदिवासी दिवस है. यह दिन दुनिया भर में स्वदेशी लोगों के अधिकारों की वकालत करने और उनकी रक्षा करने के लिए समर्पित है. इसे विश्व आदिवासी दिवस या विश्व के मूल निवासियों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में भी जाना जाता है. हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है.
इस दिन का उद्देश्य स्वदेशों लोगों की जरूरतों के बारे में जागरूकता बढाना है. आदिवासी समाज का इतिहास बहुत पुराना और समृद्ध है, लेकिन दुर्भाग्य से आज भी दुनिया के हर कोने में यह आदिवासी समाज बिखरा हुआ है, मूल निवासी होकर भी वह तमाम विकास से अछूता है. अस्पृश्यता को दूर करने और आदिवासी समाज को भी विकास का हिस्सा देने के इरादे से हर साल 9 अगस्त को ‘विश्व आदिवासी दिवस’ मनाया जाता है.
आज विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आइये जानते हैं, इस दिन को मनाने के पीछे का इतिहास..
दिसंबर 1992 में, UNGA ने 1993 को विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष बनाने का संकल्प अपनाया. 23 दिसंबर 1994 को, UNGA ने अपने प्रस्ताव 49/214 में निर्णय लिया कि विश्व के आदिवासी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दशक के दौरान हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाएगा.
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बता दें कि 9 अगस्त 1982, को संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर मूलनिवासियों का पहला सम्मेलन हुआ था. इसकी स्मृति में विश्व आदिवासी दिवस मनाने की शुरुआत 1994 में कि गई थी. इस दौरान आदिवासियों की मौजूदा हालात, समस्याएं और उनकी उपलब्धियों पर चर्चा हो रही है. प्रकृति के सबसे करीब रहनेवाले आदिवासी समुदाय ने कई क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभाई है. संसाधनों के आभाव में भी इस समुदाय के लोगों ने अपनी एक खास पहचान बनाई है. गीत-संगीत-नृत्य से हमेशा ही आदिवासी समुदाय का एक गहरा लगाव होता है. उनके गीतो-नृत्यों में प्रकृति से लगाव दिखता है.
बतातें चले कि ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार, यह बताया गया कि 2016 में, लगभग 2,680 ट्राइबल भाषाएं खतरे में थीं और विलुप्त होने की कगार पर थीं. इसलिए, संयुक्त राष्ट्र ने इन भाषाओं के बारे में लोगों को समझाने और जागरूकता फैलाने के लिए 2019 को आदिवासी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष नामित किया है.