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रांची/डेस्क: आज 13 अप्रैल 2025 को पूरे भारत में बैसाखी का पर्व बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा हैं. खासकर पंजाब और उत्तर भारत में इस पर्व की रौनक देखने लायक होती हैं. खेतों में फसलें लहलहा रही है और गुरुद्वारों में भजन-कीर्तन की गूंज सुनाई दे रही हैं.
किसानों की खुशियों का त्योहार
बैसाखी मुख्य रूप से एक कृषि पर्व है, जो रबी की फसल की कटाई के उपलक्ष्य में मनाया जाता हैं. किसान इस दिन को अपनी मेहनत का फल मिलने के प्रतीक रूप में देखते हैं. नई फसल के घर आने की खुशी में लोग ढोल-नगाड़ों के साथ भांगड़ा और गिद्धा करते हैं.
खालसा पंथ की स्थापना का दिन
सिख धर्म के लिए यह दिन एक ऐतिहासिक मोड़ लेकर आय था. 1699 में इसी दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी. उन्होंने पांच प्यारों की दीक्षा देकर सिख धर्म को एक नई पहचान दी और जात-पात, भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत संदेश दिया.
धार्मिक कार्यक्रम और नगर कीर्तन
बैसाखी के दिन गुरुद्वारों में विशेष अरदास होती है, भजन-कीर्तन और लंगर का आयोजन किया जाता हैं. साथ ही नगर कीर्तन की शोभा यात्राएं भी निकलती है, जिनमें सिख समुदाय के लोग शस्त्र प्रदर्शन करते है और गुरु की शिक्षाओं का प्रचार करते हैं.
बैसाखी का आध्यात्मिक संदेश
यह पर्व इरफ उत्सव नहीं बल्कि आत्मचिंतन और समाज में एकता का संदेश भी देता हैं. यह दिन हमें याद दिलाता है कि मेहनत, समर्पण और सेवा से ही जीवन में सच्ची खुशी पाई जा सकती है.