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रांची/डेस्क: केंद्र ने गुरुवार को वैवाहिक दुष्कर्म से संबंधित मामले में हलफनामा दायर किया और कहा कि संवैधानिक वैधता के आधार पर आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को खत्म करने से विवाह संस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा और इसके लिए सख्त कानूनी दृष्टिकोण के बजाय व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया जवाब
केंद्र ने जोर देकर कहा कि जब तक विधायिका द्वारा अलग से उपयुक्त रूप से तैयार दंडात्मक उपाय प्रदान नहीं किया जाता है, तब तक इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए. केंद्र ने हलफनामा भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दायर किया, जो पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है. उल्लेखनीय रूप से, भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2, जो बलात्कार को परिभाषित करता है, में कहा गया है कि एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है, जब तक कि पत्नी 15 वर्ष से कम उम्र की न हो.
वैवाहिक संबंधों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने से वैवाहिक संबंधों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है और विवाह संस्था में गंभीर गड़बड़ी हो सकती है. केंद्र ने हलफनामे में कहा, "तेजी से बढ़ते और लगातार बदलते सामाजिक और पारिवारिक ढांचे में, संशोधित प्रावधानों के दुरुपयोग से भी इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि किसी व्यक्ति के लिए यह साबित करना मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होगा कि सहमति थी या नहीं."
सख्त कानूनी दृष्टिकोण के बजाय एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता
अपने हलफनामे में, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि वैवाहिक दुष्कर्म से संबंधित मामले का देश में बहुत दूरगामी सामाजिक-कानूनी प्रभाव होगा और इसलिए, सख्त कानूनी दृष्टिकोण के बजाय एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है. केंद्र ने बताया कि धारा 375 अपने दायरे में सभी कृत्यों को शामिल करती है, जिसमें अनिच्छुक यौन संबंध से लेकर घोर विकृति तक शामिल है और कहा कि धारा 375 एक सुविचारित प्रावधान है, जो अपनी चारदीवारी के भीतर एक पुरुष द्वारा महिला पर यौन शोषण के हर कृत्य को कवर करने का प्रयास करता है.