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रांची/डेस्क: आज के जमाने में अक्सर कई घरों में प्रॉपर्टी को लेकर विवाद देखने को मिलता है. जैसे कि जिस भी घर में दो या उससे ज्यादा संपत्ति के हकदार होते है, उस घर में प्रॉपर्टी विवाद ज्यादा देखने को मिलता है. ऐसे में प्रॉपर्टी विवाद के कई मामले कोर्ट में चले जाते है. यही नहीं प्रॉपर्टी के लिए तो भाई अपने भाई के जान जा दुश्मन बन जाता है. ऐसे में ऐसा ही एक प्रॉपर्टी विवाद को लेकर मामला सामने आया है. यह मामला सोशल मीडिया में खूब तेजी से वायरल हो रहा है. यहां दो भाइयों के बीच प्रोपर्टी का विवाद इतना बढ़ गया कि उन दोनों में अपने पिता के मौत के बाद उनके शव के दो अलग-अलग टुकडें करके अंतिम संस्कार करने की डिमांड कर दी. जी हाँ आपने सही सुना. आइए आपको इस बारे में पूरी जानकारी देते है.
क्या है मामला?
मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में रविवार 02 फरवरी को दो भाइयों के बीच अपने पिता के अंतिम संस्कार को लेकर झड़प हो गई. इससे उनके गांव में भयंकर तनाव फैल गया. उन दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि एक भाई ने यह प्रस्ताव रख दिया कि पिता के शव के दो टुकड़े करके अलग-अलग दाह संस्कार किया जाए. इस प्रस्ताव को सुनने के बाद सभी के पैरों तले जमीन खिसक गई. आपको बता दे कि ध्यानी सिंह घोष ताल लिधोरा गांव निवासी जो 85 साल का था उसकी मौत हो गई थी.
आपको यह बात जानकार काफी हैरानी होगी कि उनकी शव को लावारिस छोड़ दिया गया था. उनके दोनों बेटे किशन सिंह और दामोदर सिंह के बीच यह विवाद था कि उनका अंतिम संस्कार कौन करेगा. जैसे ही दोनों के बीच विवाद बढ़ गया तो ग्रामीणों ने इस बात की सूचन पुलिस को दी. इसके बाद पुलिस और प्रशासन ने दोनों भाइयों को शांत कराने की कोशिश की. लेकिन उनके बीच सुलह नहीं हो पाई. इसके बाद अधिकारियों ने ग्रामीणों और मृतक के परिजनों से बातचीत कर इस मामले का हल निकाला और इसे सुलह.
किसने किया दाह संस्कार?
आपको बता दे कि दामोदर अपने बीमार पिता की देखभाल करता था. उसके पिता की मौत हो जाने के बाद वह उनके दाह संस्कार की तैयारियां कर रहा था. इस दौरान किशन अपने परिवार के साथ आया और उसने कहा कि पिता का दाह संस्कार वही करेगा. पिता के दाह संस्कार को लेकर बहस इतनी बढ़ गई कि दोनों के बीच हाथापाई हो गई. इसे देखने के बाद सभी ग्रामीण हैरान हो गए. इसके बाद किशन ने यह सुझाव दिया कि पिता के शव के दो हिस्से कर दिए जाए. ऐसे में दोनों अपने पिता का दाह संस्कार कर सकेंगे. उसके इस प्रस्ताव को परिजनों और ग्रामीणों ने अस्वीकार किया. लेकिन फिर भी वह अपने प्रस्ताव से पीछे नहीं हटा. अंत में किशन मौजूदगी में और अधिकारियों के निगरानी में दामोदर को अपने पिता का दाह संस्कार करने की अनुमति अधिकारियों ने दी.