रवि राजा/न्यूज़11 भारत
जमुआ/डेस्क: नवरात्रि की दशमीं पर शनिवार को महिलाओं ने पारंपरिक तरीके से 'सिंदूर खेला' का आयोजन किया. इस दौरान महिलाओं ने एक-दूसरे के गाल और माथे पर सिंदूर लगाकर बधाई दी और मां दुर्गा को विदाई दी. यह परंपरा पति की लंबी उम्र के लिए की जाती है विजयदशमी के अवसर पर सार्वजनिक दुर्गा पूजा मिर्जागंज बदडीहा और टफकॉन परिवार के द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में महिलाओं ने मां दुर्गा की विदाई से पहले उन्हें सिंदूर अर्पित किया.
इसके बाद उन्होंने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर मंगलगीत गाए और मां दुर्गा से सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद मांगा. दुर्गा पूजा के अंतिम दिन 'सिंदूर खेला' का विशेष महत्व है. बताया जाता हैं कि इस दिन महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं और फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं.
जमुआ प्रखंड के मिर्जागंज में सार्वजनिक दुर्गा मंदिर में माँ दुर्गा का प्रतिमा विसर्जन बहुत ही अद्भुत होती हैं कहते हैं सदियां बीत गई, यहां सभी कुछ परंपराओं के साथ हीं चलता है. आधुनिकता का समावेश लेकिन मान्यताओं पर टिके पांव. तिथि और दिन चाहे कुछ भी हो यहां माता की विदाई ठीक दसवें दिन की शाम को होती है. भक्तगण सामूहिक रूप से अपने कंधों पर मां की प्रतिमा को रखकर विदाई यात्रा में शामिल होते हैं. न कोई डीजे और न कोई बैंड. बदलाव सिर्फ़ इतना कि प्रकाश के लिए एलईडी ने लालटेन की जगह ले ली.
कई क्विंटल मिट्टी से बनी मां की प्रतिमा को अपने कांधे पर उठाकर भक्तगण यहां तकरीबन पांच किलोमीटर की दूरी तय करते हैं,उस पर भी यह कि तालाब से पहले प्रतिमा को कहीं नीचे नहीं रखना है. आगे-आगे कांधों पर मां की प्रतिमा, ढाक बजाते लोग और उसके पीछे हजारों की संख्या में महिलाएं,पुरुष, बच्चे,बूढ़े सभी. सभी के चेहरे पर मां से बिछड़ने का विदाई भाव. मिर्जागंज से चलकर बदडीहा के महतो आहार तक का पांच किलोमीटर का सफ़र मानो मिनटों में तय हो गया हो. मां को जल में प्रवाहित करते हीं नहीं थमती है किसी की आंखों से आंसू. अदभुत अलौकिक नज़ारा. आम हो या ख़ास हर तरफ आस्था का साम्राज्य. महतो आहार के चारो ओर तकरीबन दो किलोमीटर के दायरे में मां को जल अर्पित करते कई गांव के लोग और रो-रो कर विदाई गीत गाती महिलाएं और फिर मां के आगमन का वर्ष भर का लंबा इंतजार.
कुछ ऐसा हीं अद्भुत नज़ारे का गवाह बनती है यहां की फिज़ा. शनिवार को भी कुछ ऐसा हीं हुआ.भक्तगण ने अपने पारम्परिक मान्यताओं के साथ हीं दी मां की विदाई. आगे-आगे जमुआ थाना के जवान, और पीछे मां को कांधे पर उठाये भक्तों का जनसैलाब, द्वीप, आरतियों का लंबा सिलसिला, आंचल फैलाकर रुआंसी, रोती आंखे. बिछुड़ने का भाव. फिर आने की याचना. सचमुच बहुत अद्भुत होता है यहां मां की विदाई का दृश्य.