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रांची/डेस्क: आज पूरे भारत में बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में दशहरा मनाया जा रहा है. आज शाम को श्री राम द्वारा रावण के वध की याद में रावण का पुतला जलाया जाएगा. लेकिन भारत में कई जगह ऐसी भी हैं जहां रावण की पूजा की जाती है. कुछ लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं. तो कहीं तेरहवीं की रस्में निभाई जाती हैं. कुछ लोग उसे देवता मानते हैं तो कुछ उसे अपना वंशज मानते हैं. वहीं, उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के पास बिसरख गांव में दशहरे की एक अलग ही परंपरा देखने को मिलती है. आइए जानते हैं इनके बारे में.
मध्य प्रदेश के मंदसौर में लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं, इसीलिए यहां के लोग उसकी पूजा करते हैं. कहा जाता है कि मंदसौर में रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका था, इसीलिए यहां के लोग आज भी रावण को अपना दामाद मानते हैं. दशहरे की शाम को पूरे देश में रावण का पुतला जलाया जाता है. मंदसौर में इसी पुतले की पूजा की जाती है. मंदसौर के रुंडी में रावण की एक प्रतिमा है जिसकी पूजा की जाती है. ग्रेटर नोएडा के पास के गांव में एक अलग परंपरा देखने को मिलती है उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के पास स्थित बिसरख गांव में रावण की पूजा की जाती है, उसका पुतला जलाना तो दूर की बात है. इस गांव में दशहरे पर न तो रामलीला होती है और न ही रावण दहन. बिसरख गांव के लोगों का मानना है कि यह वह पवित्र भूमि है जहां रावण का जन्म हुआ था.
बिसरख को रावण की जन्मस्थली माना जाता है और इसीलिए यहां रावण का सम्मान किया जाता है. गांव में स्थित एक प्राचीन मंदिर में रावण के पिता ऋषि विश्वश्रवा द्वारा स्थापित एक अष्टकोणीय शिवलिंग है, जिसके बारे में मान्यता है कि रावण और उसके भाई कुबेर ने इस शिवलिंग की पूजा की थी. यहां की जाती है रावण की तेरहवीं की रस्म उत्तर प्रदेश के जसवंतनगर में दशहरे पर रावण की आरती उतारकर पूजा की जाती है. फिर उसे पीटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाता है. इसके बाद लोग रावण के टुकड़ों को घर ले जाते हैं और तेरहवें दिन रावण की तेरहवीं भी की जाती है. मंदोदरी की पूजा उसके मायके में की जाती है. चूंकि मंदसौर रावण का ससुराल था और यहां की बेटी का विवाह रावण से हुआ था, इसलिए दामाद के सम्मान की परंपरा के कारण यहां रावण के पुतले को जलाने की बजाय उसकी पूजा की जाती है. मंदसौर के रुंडी में रावण की मूर्ति बनी है, जिसकी पूजा की जाती है.
चिखली गांव में नहीं होता रावण दहन
मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के एक गांव में रावण का दहन नहीं किया जाता, बल्कि उसकी पूजा की जाती है. रावण का यह स्थान उज्जैन जिले का चिखली गांव है. इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि अगर रावण की पूजा नहीं की गई तो गांव जलकर राख हो जाएगा. इसी डर के कारण गांव के लोग यहां रावण का दहन नहीं करते और उसकी मूर्ति की पूजा करते हैं.
रावण और उसके पुत्र को भगवान माना जाता है
महाराष्ट्र के अमरावती में गढ़चिरौली नामक स्थान पर आदिवासी समुदाय द्वारा रावण की पूजा की जाती है. दरअसल, आदिवासियों का त्योहार फाल्गुन विशेष रूप से रावण की पूजा करके मनाया जाता है. कहा जाता है कि यह समुदाय रावण और उसके पुत्र को अपना भगवान मानता है.
मछुआरा समुदाय करता है पूजा
आंध्र प्रदेश के काकीनाडा नामक स्थान पर भी रावण का मंदिर है, जहां भगवान शिव के साथ उसकी भी पूजा की जाती है. यहां खास तौर पर मछुआरा समुदाय रावण की पूजा करता है. इस स्थान के बारे में उनकी कुछ और मान्यताएं भी हैं.
लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं
जोधपुर - राजस्थान के जोधपुर में भी रावण का मंदिर और उसकी प्रतिमा स्थापित है. यहां कुछ खास समुदाय के लोग रावण की पूजा करते हैं और खुद को रावण का वंशज मानते हैं. इस जगह को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं. कुछ लोग इसे रावण का ससुराल कहते हैं.
कर्नाटक और दक्षिण भारत में पूजा
कर्नाटक के मांड्या जिले में मालवल्ली तालुका नामक स्थान पर रावण का मंदिर बना है, जहां लोग उसकी पूजा करते हैं. इसके अलावा कर्नाटक के कोलार में भी लोग शिव भक्त के तौर पर रावण की पूजा करते हैं. इसके अलावा दक्षिण भारत में रावण की विशेष पूजा की जाती है. माना जाता है कि रावण एक परम विद्वान, विद्वान और शिव भक्त था. इन गुणों के कारण दक्षिण भारत के कुछ स्थानों पर रावण की पूजा की जाती है.