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रांची/डेस्कः- राम सब जगह हैं जिसमें राम बस गए वही तो राम हैं. सबमें अपने अपने राम को देखा गया है. कभी मशहूर शायर इल्लामा इकबाल ने कहा था कि राम ऐसे नेतृत्वकर्ता हैं जो लोगों को सही राह दिखा कर अंधेरे से रोशनी की ओर लाते हैं. राम सबके हैं और सबके अपने-अपने राम हैं. यही कारण हैं कि राम को सभी अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया है. राम को तुलसीदास ने भी माना, कबीर ने भी माना और निराला ने भी इसका बखान किया सभी ने अपने-अपने समय के तरीके से प्रभु श्री राम का बखान किया है. राम भले एक हैं पर सबकी दृ्ष्टि इनके प्रति अलग-अलग है. राम को देवता माना जाता है लेकिन प्रभु श्रीराम का मानवीय जीवन बिल्कुल साधारण आम इंसान सा रहा है. देवताओँ के तरह उन्होने कभी चमत्कार नहीं दिखाया है. यही कारण है कि कायदे कानून में बंधे हुए राम को एक मर्यादित पुरूष भी कहा जाता है. प्रभु श्रीराम के बारे में सभी लोगों ने अपने अपने तरीके से कही है, मशहूर शायर अल्लामा इकबाल ने अपनी एक नज्म में कहा था..
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिंद
इस नज्म के जरिए अल्लामा इकबाल प्रभुराम के प्रति चिंतन का पैगाम देते है.
अल्लामा इकबाल ने अपने नज्म के जरिए से कहा है कि राम का वजूद पर हमें नाज है हम प्रभुराम को इमाम-ए-हिंद यानी देश को दिशा देने वाला नेतृत्वकर्ता समझते हैं. अल्लमा इकबाल के नजर में प्रभु राम एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो लोगों को अंधेरों से रौशनी की ओर ले जाते हैं.
बता दें कि अल्लामा इकबाल को उर्दू शायर में मिर्जा गालिब व मीर तकी जैसी दर्जा दी जाती है. कहा जाता है कि इकबाल के पुर्वज कश्मीरी पंडित थे. जो बाद में इस्लाम कबूल कर स्यालकोट में बस गए थे. लेकिन उसने गंगा-जमुनी तहजीब को नहीं भुला और इनपर काफी नज्में लिखी. उन्होने लिखा है.. "सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा", भगवान राम के प्रति भी इकबाल ने एक नज्म लिखा है, "है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज" लिखा है.
पूरी नज्म इस प्रकार है..
लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त से जाम-ए-हिंद
सब फ़लसफ़ी हैं ख़ित्ता-ए-मग़रिब के राम-ए-हिंद
ये हिन्दियों की फ़िक्र-ए-फ़लक-रस का है असर
रिफ़अत में आसमाँ से भी ऊँचा है बाम-ए-हिंद
इस देस में हुए हैं हज़ारों मलक-सरिश्त
मशहूर जिन के दम से है दुनिया में नाम-ए-हिंद
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिंद