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पटना/डेस्क: बिहार में कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले है. इसे लेकर सभी पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है. राज्य में सभी दलों के द्वारा एक दूसरे पर तंज कसने का दौर लगातार जारी है. ऐसे में विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी ने बिहार की नीतीश सरकार और चिराग पासवान पर जमकर हमला बोला है. उन्होंने कहा कि चिराग पासवान में वो गट्स नहीं है जो रामविलास पासवान में थी. रामविलास पासवान हमेशा दलित ,शोषित और गरीबों के हित की लड़ाई लड़ते थे. उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरा दी थी. लेकिन चिराग उनके साथ है जिन लोगों ने उन्हें अपमानित किया. इसके अलावा उन्होंने आगे कहा कि चिराग केवल नाम के हनुमान है. उनमे बस बोलने का गुण है, करने का नहीं. आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को कैसे अधिक सीट मिले, इसे लेकर वह प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे हैं.
नीतीश सरकार पर उन्होंने हमला बोलते हुए कहा कि बिहार की जनता अब बदलाव चाहती है. राज्य में कोई भी ऐसा थाना या ब्लॉक नहीं है जहां पैसे लिए बिना काम होता हो. सब जगह बेरोजगारी है भ्रष्टाचार है. लोगों का जोई काम एक दिन में होना चाहिए वह काम एक महीने डेढ़ महीने तक ताला जाता है. जब तक लोग परेशान होकर सामने से ना बोल दें कि सिर आपको क्या चाहिए तब तक लोगों का काम नहीं होता है.ऐसे में एक से दो महीने तक लोगों को घुमाया जाता है और परेशान होकर वह सामने से ऑफिसर को कह देते है कि आपको क्या चाहिए. फिर ऑफिसर कहते है कि चपरासी से बात कीजिए फिरे वहां चपरासी बोलता है कि साहब ने कहा 10 हजार रुपए दो. इसके बाद पैसे लिए जाते है, क्योंकि पैसे लिए बिना काम नहीं होता है. राज्य में छोटे से छोटे काम जैसे जाति प्रमाण पत्र हो या आवासीय प्रमाण पत्र सब पैसे लेकर बनते है.
उन्होंने आगे कहा कि राज्य में जो सरकार है फिट नहीं है. साल 2005 से लेकर 2010-12 तक सरकार फिट थी. उस ससमय राज्य में कुछ काम दिखा था. इसके बाद नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी से लड़ाई लड़ने में लग गए. लड़ाई लड़ते-लड़ते साल 2023 तक वह लड़ाई ही लड़ते रहे. इसके बाद अब उनकी तबीयत स्वस्थ है. अभी ऑफिसर सरकार को चला रहे है. यह लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है. जनता के चुने हुए प्रतिनिधि के पास एक जवाबदेही होती है कि वह कुछ डिलीवरी दे. अगर वह अच्छे से काम नहीं करेंगे तो जनता के पास ऑप्शन होता है कि वह 5 साल में सरकार बदल दें. लेकिन एक IAS-IPS अधिकारी का 60 साल की उम्र में रिटायरमेंट होना है, उन्हें बीच में से कोई हटा नहीं सकता. ऐसे में उनको कोई फ़िक्र नहीं है कि जनता का काम हो रहा है कि नहीं हो रहा है. हां अगर सरकार सही हो तो उसके समय-समय से रिव्यु लेने चाहिए. अगर क्षेत्र में अधिकारी ठीक से काम नहीं कर रहे है, तो उन्हें घर बैठने की ताकत नेता में ही है. लेकिन इसके लिए भी वह थोड़ा बहुत डरते है. जब नेता ही अस्वस्थ हो तो अधिकारियों को क्या फ़िक्र है उन्हें तो वोट लेना नहीं है.