न्यूज11 भारत
रांची/डेस्कः- पिछले कुछ दिनों से कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकान के मालिकों का नेमप्लेट लगाने की खबर काफी वायरल है. योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी की सरकार पूरे राज्य में इस आदेश को लागू करवाने को लेकर आदेश दिया था. पर यूपी सरकार के इस फैसले का विरोध विपक्षी पार्टी तो की ही साथ में एनडीए दल के जेडीयु औऱ आएलडी समेत कई पार्टियों ने इसकी आलोचना की है. विपक्ष का कहना है कि ये एक सांप्रदायिकता फैलाने व विभाजनकारी निति अपनाने की ओर कदम है.विपक्ष का कहना है कि सरकार का उद्देश्य मुसलमानों व अनुसुचित जनजाति को पहचान बताने को मजबुर कर रही है. हालांकि सत्ता पक्ष के लोगों का कहना था कि यह कदम तीर्थयात्रियों के धार्मिक भावना को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है.
वहीं मामला कोर्ट में जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि फलविक्रेता, ढ़ाबा मालिक, व फेरीवाले को भोजन की प्रकार को दिखाने की जरुरत हो सकती है पर उन्हें अपना नाम व पहचान बताने को लेकर बाध्य नहीं किया जा सकता. दुकानदारों को नेमप्लेट लगाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है. एससी ने साफ कह दिया है कि शाकाहारी मांसाहारी बोर्ड को लगाना है न कि नेमप्लेट को जिसमें आपका नाम लिखा हो. कोर्ट ने साफ कहा है कि दुकान वाले को सिर्फ खाने के प्रकार को बताने की जरुरत है न कि उन्हें अपनी पहचान बताने की जरुरत है. दुकान में खाना शाकाहारी है या मांसाहारी ये बताना जरुरी है. फिलहाल इसकी अगली सुनवाई 26 जुलाई को होनी है तब तक के लिए कोर्ट इसपर अंतरिम रोक लगा रखी है. कोर्ट ने साफ कहा कि यदि याचिकाकर्ता इसको लेकर अन्य राज्यों से जोड़ते हैं तो उन राज्यों को भी नोटिस जारी किया जाएगा.
कोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंधवी ने कहा यह नियम बस एक छलावा है. कांवड़ियों के लिए ये एक छद्म आदेश है. अधिकांश दुकान तो यहां चाय औऱ फल विक्रेताओं की है. अगर दुकानदार नाम नहीं लिखते हैं तो उसपर जुर्माने लगाने के अधिकार दी जा रही है. अधिवक्ता का कहना है कि किसी रेस्टोरेंट में हम जातें हैं तो मेनु के आधार पर जाते हैं. न कि कौन परोस रहा है ये देख कर. अगर ऐसा है तो फिर ये गणतंत्र नहीं जिसकी कल्पना संविधान में की गई है. सिंधवी ने कहा कि यात्राएं कोई नई नहीं है, दशकों से चली आ रही है बिना किसी कानून अधिकार के ये आदेश जारी करना कहीं से भी उचित नहीं है.