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रांची/डेस्क: शब-ए-बारात इस्लाम की सबसे पवित्र रातों में से एक है और इसे दुनिया भर में इस्लाम धर्म के लोग मनाते हैं. इस साल शब-ए-बारात शब-ए-बारात 13 फरवरी की शाम को शुरू होकर अगले दिन यानी कि 14 फरवरी तक रहेगी. इस्लाम धर्म में शब-ए-बारात को अल्लाह की इबादत की रात माना जाता है. इस्लाम धर्म में इस दिन लोग पूरी रात अल्लाह की इबादत में बिताते हैं. इस्लाम में इस रात को काफी पाक माना जाता है.
शब-ए-बारात को मनाने का इस्लाम में विशेष महत्व है क्योंकि शब-ए-बारात इस्लाम के सबसे पाक यानी पवित्र अवसरों में से एक है. हर साल भारत समेत दुनिया भर के मुसलमान धर्म के लोग इस पर्व के लिए विशेष तैयारी करते हैं. हर साल, भारत में शब-ए-बारात की सही तारीख जानने के लिए चंद्रमा को देखने का बेसब्री से इंतजार करते हैं. शिया और सुन्नी समुदाय के लोगों की अलग है मान्यता शब-ए-बारात की शुरूआत शिया मुसलमानों के बारहवें इमाम मुहम्मद अल-महदी के जन्म से मानी जा सकती है. शिया समुदाय में इस रात को उनके जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है. वहीं सुन्नी मुस्लिम समुदाय इस पर्व को इसलिए मनाते है क्योंकि उनका मानना है कि इस दिन, खुदा ने नूह के सन्दूक को जलप्रलय से बचाया था, यही वजह है कि दुनिया भर के लोग इस दिन को मनाते हैं.
शब ए बारात यानी क्षमा की रात
इस्लामिक महीने शाबान की 15 तारीख को शब-ए-बारात (मध्य शाबान) मनाया जाता है. शब-ए-बारात को क्षमा की रात या प्रायश्चित के रूप में मनाया जाता है. फारसी शब्द 'शब' का अर्थ रात है और अरबी शब्द 'बरात' के मायने मुक्ति और क्षमा है. इस दिन नमाज पढी जाती है. इस दिन नफल व तहजूद की नमाज मुख्य रूप से पढ़ी जाती है. ‘शब-ए-बारात’ में लोग अल्लाह से अपने गुनाहों की तौबा करते हैं और अपने और परिवार के लिए दुआ मांगते हैं. तिलावते कुरआन भी दी जा सकती है.
शब-ए-बारात भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, अजरबैजान और तुर्की सहित पूरे दक्षिण एशिया में खास तौर पर मनाया जाता है. साथ ही मध्य एशिया, जिसमें उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और किर्गिस्तान शामिल हैं.