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रांची/डेस्क: मरुधरा के गौरवान्वित करने वाले इतिहास का साक्षी जयपुर की आन बान और शान नाहरगढ़ का किला का किला है. यह किला अरावली पर्वतमाला के अंतिम छोर पर बना है. इसे जयपुर की सुरक्षा को धन में रखते हुए बनाया गया था. यह किला आज भी सीना ताने शान से खड़ा है. लेकिन इस किले के बारे में ऐसी चर्चा है कि इस किले में अजीबोगरीब घटनाएं हुई हैं जो रहस्यमय बनी हुई हैं. इस चलते लोगों द्वारा इस किले को अब डरावना किला या हॉन्टेड प्लेस का नाम दिया गया है. क्षेत्रे के लोग ऐसा कहते है की इस किले में और इसकी पहाड़ियों में एक भटकती प्रेमात्मा का साया है. इस प्रेमात्मा को आज भी मुक्ति नहीं मिली है.
इस किले का निर्माण कार्य सन 1734 में 'सुदर्शनगढ़' नाम से राजा जयसिंह द्वितीय ने करवाया था. इसके बाद सवाई माधोसिंह ने सुदर्शनगढ़ का पुनर्निर्माण 1883 में आलीशान बैठक कक्ष और भित्तिचित्र से दरवाजों और खिड़कियों को सजाया. लेकिन उस वक़्त किले के निर्माण के दौरान कई ऐसी अनहोनी हुई जिसे देखने के बाद हर कोई डर गया.
लोगों का कहना है कि इस किले का सुबह के समय निर्माण कार्य होता था. लेकिन इसके बाद रात होते ही इसके दीवारें गिर जाते थे. यही नहीं खिड़की दरवाजे में लगेकांच अचानक चलती तेज हवाओं के कारण टूट जाते थे. इसके बाद चिंतित राजा ने इस बात की जानकारी एक तांत्रिक को दी. उस तांत्रिक ने अपने तंत्र विद्या से जाना कि इस किले में युवराज नाहरसिंह की प्रेतात्मा का साया है और उसे अभी तक मुक्ति नहीं मिली है.
युवराज नाहरसिंह मंदिर
इस बात की जानकारी मिलते ही राजा ने कई पंडितों से कई तरीके के पूजा करवाए और किले के अंतिम छोर पर युवराज नाहरसिंह मंदिर का निर्माण करवाया.इसके बाद रजा ने किले का नाम सुदर्शनगढ़ से बदलकर युवराज के पर नाहरगढ़ रख दिया. इस किले में लोग आज भी नाहरसिंह भोमिया के दर्शन के लिए आते है.
साल 2017 के 25 नवंबर को किले के प्राचीर से चेतन सैनी नामक एक व्यक्ति की लाश मिली थी. उसकी लाश रस्सी के सहारे लटक रही थी, जिसे देखकर सभी लोगों के होश उड़ गए थे. चेतन की लाश जिस जगह लटक रही थी, उसके नीचे गहरी खाई थी. चेतन के परिवार वालों को यह संदेह था की उसकी मौत एक हत्या है. लेकिन पुलिस के जांच के अनुसार उसे आत्महत्या बताया जा रहा था. पुलिस ने जांच के दौरान यह पता लगाया कि चेतन की किसी से दुश्मनी नहीं थी. उसके कॉल डिटेल में भी कुछ संदेहजनक नहीं दिखा था. हालाँकि पुलिस को चेतन के फ़ोन में उसकी एक सेल्फी मिली. यह सेल्फी उसने उसी जगह ली थी जहा उसकी लाश लटकी हुई मिली थी. घटनास्थल के आस पास कई पत्थरों पर कुछ ऐसा लिखा हुआ था, जिसे पढ़कर लोगों के होश उड़ गए . पत्थरों पर लिखा था "चेतन तांत्रिक मारा गया- पद्मावती'. पत्थरों पर यह लिखा हुए मिलना और चेतन की मौत का रहस्य आज भी अनसुलझा है.
साल 2024 के 1 सितंबर को दो सगे भाई राहुल पाराशर और आशीष पाराशर जी की जयपुर के शास्त्री नगर के रहने वाले थे. वह ट्रेकिंग के लिए नाहरगढ़ पहाड़ी पर गए थे. घर वापसी के समय दोनों भाइयों ने चरण मंदिर में दर्शन किया. इसके बाद दोनों रास्ता भटक गए. इसके थोड़े ही देर बाद दोनों भाई भी एक दूसरे से बिचाद गए. इसकी जानकारी मिलते ही पुलिस दोनों के खोज में जुट गई. थोड़े देर बाद पहाड़ी के एक छोर से आशीष की लाश मिली, वहीँ बड़े भाई राहुल का कोई अत्ता पता नहीं था. पुलिस ने खूब मशक्कत से खोज अभियान चलाया. लेकिन आज तक राहुल न जिन्दा मिला न ही उसकी लाश मिली. आशीष के शव का जब पोस्टमार्टम हुए तब उसके गर्दन और सिर पर गहरे चोट के निशान मिले थे. आशीष की हत्या हुई या उसके साथ कोई दुर्घटना घटी, यह भी एक सवाल बन कर रह गया.
साल 2014 में भी एक कॉलेज के स्टूडेंट की लाश किले के परिसर से मिली थी. जांच के बाद पुलिस ने इसे आत्महत्या के रूप में देखा. लेकिन परिवार वालों का कहना है कि उसकी हत्या की गई है. पुलिस आज तक इस मामले में पर्दा नहीं उठा पाई.
क्या है इन घटनाओं के पीछे का रहस्य ?