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रांची/डेस्क: बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा तो सब लेते पर इसपर अमल बहुत कम ही लोग करते हैं. आज कल देशभर में बेटियों और महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध मानो ऐसे बढ़ चुके है जैसे इन दिनों पेट्रोल-डीजल के दाम. ऐसे में सब मामलों से हटकर बेटियों को पढ़ने का पूरा हक होता है लेकिन अक्सर उन्हें मौका नहीं दिया जाता हैं. कभी घर की जिम्मेदारियां और तो कभी पुराने उसूलों के कारण उन्हें हमेशा परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला लिया हैं. आइए जानते है क्या यह नई पहल.
सुप्रीम कोर्ट की नई पहल
बेटियों की पढ़ाई को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया हैं. उन्होंने कहा है कि अब बेटियों को अपने पढ़ाई के खर्च के लिए अपने माता-पिता से पैसे मांगने का कानूनी अधिकार मिलेगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर आवश्यकता हो तो लड़कियां अपने माता-पिता को पढ़ाई के खर्च के लिए बाध्य कर सकती हैं, बशर्तें कि उनके माता-पिता की आर्थिक स्थिति इसे सहन करने की हो. यह फैसला तलाक से जुड़े एक मामले में सुनाया गया, जिसमें एक महिला ने अपनी बेटी के लिए उसके पिता से 43 लाख रूपए लेने से इंकार कर दिया था जबकि वह आयरलैंड में अपनी पढ़ाई कर रही थी. यह राशि उसकी मां को मिलने वाले गुजारा भत्ते का हिस्सा थी.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भुइयां की पीठ ने इसे मामले की सुनवाई करते हुए कहा "बेटी होने के नाते उसे शिक्षा के लिए अपने माता-पिता से पैसे प्राप्त करने का अधिकार हैं. यह अधिकार कानूनी तौर पर लागू किया जा सकता हैं." कोर्ट ने यह भी माना कि यह एक मौलिक अधिकार है, जिसके तहत माता-पिता को अपनी वित्तीय स्थिति के अनुरूप बेटी की पढ़ाई के खर्च को वहन करने के लिए बाध्य किया जा सकता हैं.
इस फैसले से अब माता-पिता को यह समझना होगा कि अगर उनकी बेटी शिक्षा प्राप्त करना चाहती है तो उसे आवश्यक संसाधन मुहैया कराना उनकी जिम्मेदारी हैं. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश लड़कियों के अधिकारों को और मजबूत करता है और एक सशक्त समाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं.