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रांची/डेस्क: आपने कभी ध्यान दिया है कि जब हमें जोर से भूख लगती है, तो हम अक्सर कहते हैं कि पेट में चूहे दौड़ रहे हैं? क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों कहा जाता है? क्या पेट में सचमुच चूहे दौड़ रहे होते हैं? या फिर यह महज एक मुहावरा है जो हमारे भूख के एहसास को शब्दों में ढालता है? आइए, इस दिलचस्प मुहावरे की जड़ें समझते हैं.
जब हमें भूख लगती है, तो पेट से अक्सर एक अजीब सी आवाज आती है, जैसे गुड़-गुड़, हल्का सा खरखराहट जैसा शोर. ऐसा महसूस होता है जैसे कोई छोटे-छोटे चूहे पेट के अंदर दौड़ रहे हों. यही वो क्षण है जब हम यह कहते हैं कि पेट में चूहे दौड़ रहे हैं. लेकिन इसके पीछे सिर्फ आवाज नहीं, एक गहरी वैज्ञानिक वजह भी छिपी है.
दरअसल, जब पेट खाली होता है और हमारी आंतों में पाचन प्रक्रिया के लिए कुछ नहीं होता, तो मस्तिष्क एक विशेष हार्मोन को सक्रिय करता है. यह हार्मोन पेट और आंतों को संकेत भेजता है कि भोजन की आवश्यकता है. जैसे-जैसे हमारी पाचन मांसपेशियां सिकुड़ती हैं, वैसे-वैसे पेट से यह आवाजें आने लगती हैं. यह सब उस समय का परिणाम होता है जब हमारी भूख चरम सीमा पर होती है और यहीं से उत्पन्न होती है वह चूहे दौड़ने वाली आवाज.
लेकिन सवाल यह है कि इस स्थिति में चूहे ही क्यों? क्यों न हम कहते, पेट में खरगोश कूद रहे हैं या पेट में घोड़े दौड़ रही है? दरअसल, यह मुहावरा इस वजह से चुना गया क्योंकि चूहे के बारे में हमारी सामान्य धारणा यही है कि वे छोटे, फुर्तीले और भागने में तेज़ होते हैं.ठीक वैसे ही जैसे तेज़ भूख लगने पर पेट में हलचल होती है.चूहे की छवि इस भागदौड़ और अराजकता से जुड़ी हुई है, जो हमें भूख की अवस्था में महसूस होती है.