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रांची/डेस्क:- तराइन का युद्ध पृथ्वीराजचौहान व मुहम्मद गौरी को बीच सन 1192 मे लड़ी गई थी, और इस जंग के 400 साल के बाद एक और युद्ध लड़ा गया था खानवा का युद्ध. भारतीय इतिहास में ये एक बड़ी महत्वपुर्ण घटना है इसने मुगल सम्राट बाबर के लिए भारतीय उपमाहाद्वीप के लिए रास्ता खोल कर रख दिया.
राज्यसभा सांसद की विवादित बयान
राज्यसभा सांसद रामजी लाल ने राणा सांगा को लेकर एक बयान दिया है जिसको लेकर राज्सथान समेत पूरे् देश में सियासी घमाशान तेज हो गया है. उन्हौने सदन में कहा कि इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा के बुलाने पर बाबर हिन्दुस्तान आया था. अब सवाल ये उठता है कि क्या वाकई मेवाड़ के राजा राणा सांगा ने बाबर को हिन्दुस्तान आने का न्योता दिया था. दिल्ला के शाशक इब्राहिम लोदी को राणा सांगा ने खुद 18 बार मात दी थी तो फिर बाबर को बुलाने की नौबत क्यों आन पड़ी.
इतिहास की जटिलता
इतिहास की जटिलता के वजह से इस तरह के सवाल पर कई द्रिष्टिकोण सामने आते हैं. इतिहासकारों ने सबसे पहले मुगल सम्राट बाबर की लिखी बाबरनामा में उल्लेखित व्याख्या का जिक्र किया, फरगना के शाशक बाबर को समरकंद ने पराजित किया था. अपना राज्य का विस्तार करने के लिए 1526 में हिन्दुकुश में प्रवेश किया था. 1526 की लड़ाई में लोदी वंश के शासक इब्राहिम लोदी को हराया था. भारत में मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने दो शताब्दियों तक भारतीय उपमहाद्वीप मे शाशन किया, 26 दिसंबर को बोबर की आगरा में मृत्यु हो गई थी.
राणा सांगा की महानता
संग्राम सिंह जिन्हे राणा सांगा के नाम से भी जाना जाता है. इन्होने कई अविश्वसनिय बाधाओं खिलाफ लड़कर विजय प्राप्त की, वो भी सिर्फ एक आंख व एक स्वस्थ हाथ के साथ. अपने पूरे जीवन काल में वे कई बहादुरी भरी लड़ाई लड़ी. 1508 मे वे मेवाड़ के शासक बनकर महान उचाईयों को छुआ. राजगद्दी में बैठने से पुर्व उसने एक परंपरा को तोड़ दिया जहां की व्यवस्था थी कि कोई दिव्यांग व्यक्ति राजगद्दी पर नहीं बैठ सकता है. राणा सांगा ने जब अपनी शासण शुरु किया तो दिल्ली सलतलत अपने चरम सीमा पर थी. गुजरात व मालवा के शाशक उनके् खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं करते थे.