न्यूज़11 भारत
रांची/डेस्क: प्रयागराज में इन दिनों 12 वर्षों में आने वाला महाकुंभ मेला का आयोजन चल रहा है. वहीं, मेले में आए हुए एक बाबा इन दिनों काफी चर्चाओं में हैं. ये कोई साधारण बाबा नहीं हैं. इनके पास आईआईटी मुंबई से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की डिग्री है. हम बात कर रहे हैं करोड़ों के पैकेज को ठुकराने वाले अभय सिंह सिंह. उन्होंने बताया कि उन्होंने आईआईटी मुंबई से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की है और उन्हें करोड़ों का पैकेज भी मिला. पर उन्होंने मोह-माया को त्याग कर वैराग्य के जीवन को अपनाने का फैसला किया. सोशल मीडिया के इस दौर में अभय महाकुंभ में चर्चा का केंद्र बने हुए हैं. सभी लोग इस IIT वाले बाबा के बारे में ही बात कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर उनको लेकर मिम्स की बाढ़ आ गई है. आइए जानते हैं कौन हैं ये सन्यासी और क्या है उनकी कहानी.
ऑल इंडिया रैंक थी 731
हरियाणा के झज्जर जिले के रहने वाले अभय सिंह के पिता झज्जर कोर्ट में बतौर वकील प्रैक्टिस करते हैं. झज्जर जैसे छोटे शहर से बाहर निकल कर आईआईटी मुंबई तक पहुंचने वाले अभय सिंह की कहानी काफी अनोखी और दिलचस्प है. कई मीडिया चैनल को दिए इंटरव्यू में अभय सिंह ने बताया कि IIT-JEE परीक्षा में उनकी ऑल इंडिया रैंक (AIR) 731 थी. इसके बाद उन्होंने अपनी रुचि के अनुसार आईआईटी बॉम्बे में 2008 से 2012 के बैच में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में अपनी पढ़ाई पूरी की.
वैराग्य का जीवन
जब वह पास-आउट हुए तो उन्होंने टीचिंग का काम शुरू कर दिया. इसके बाद उन्होंने कई फैशन मैगज़ीन और ऐड फिल्मों में भी कुछ दिनों तक काम किया. एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि कैसे बचपन में उनके आसपास होने वाले डोमेस्टिक वायलेंस ने उनके दिमाग पर असर किया. इसपर उन्होंने रिसर्च भी किया और एक फिल्म भी बनाई. 2017 में उन्हें कुछ मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम से गुजरना पड़ा. जिसके बाद मेंटल ट्रॉमा से बाहर निकालने के लिए उन्होंने योग और मेडिटेशन करनी शुरू की. उनकी गर्लफ्रेंड भी रही और दोनों चार वर्षों तक रिलेशनशिप में भी रहे. हालांकि, इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि उनके अंदर कोई फीलिंगस नहीं है और उन्हें नहीं पता था कि जीवन में वह कैसे आगे बढ़ेंगे. इसके बाद उन्होंने सब कुछ छोड़कर सन्यासी जीवन जीने का फैसला किया. उन्होंने एक किताब भी लिखी है. ए ब्यूटीफुल प्लेस टू गेट लॉस्ट नामक किताब में उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया है. पर धीरे-धीरे उनकी रुचि इन सब से खत्म होने लगी और उन्होंने वैराग्य के जीवन को अपनाने का फैसला किया. अब वह केवल महादेव के दिखाए रास्ते पर चलते हैं.