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रांची/डेस्कः- एकल परिवार का कॉन्सेप्ट जब से शुरु हुआ है तब से विभिन्न प्रकार की बीमारी बच्चों में देखने को मिलने लगी है.इसी में से एक बीमारी निकल कर आई है ऑटिज्म. विश्षज्ञों का मानना है कि जब संयुक्त परिवार था तो बच्चों का संपर्क व लगाव घर के बहुत सारे लोगों से होता था. इसके जरिए बच्चों का मानसिक व बौद्धिक विकास अच्छे से हो पाता था. वहीं जब से एकल परिवार की परिकल्पना समाज मे आई है तब से परिवार के बच्चों के लिए चिंता का विषय बन गया है. झारखंड में देखे तो 75 में से एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार पाया जा रहा है.
झारखंड में आखिर बढ़ क्यों रहा है ऑटिज्म
ऑटिज्म एक बीमारी है जो काफी पहले से है, शायद इसकी जानकारी लोगों को पहले से नहीं थी. लोगो में जागरूकता बढ़ने के बाद 19वी सदी में लोगों को इसके बारे में पता चला. मेडिकल साईंस के नए शोध में इस बीमारी के बारे में विस्तार से पता चला. कहा जाता है कि झारखंड में प्रत्येक 75 में से एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार है. यही देश की बात हो तो ये आंकड़ा 68 बच्चा पर है. समाज में एकल परिवार का प्रचलन बढ़ने से ये बीमारी बढ़ी है. रांची के सेंटर में ऐशे 40 बच्चे पाए गए हैं जिससे आप अंदाजा लगा सरके हैं कि देश का राज्य का हाल इसक्षेत्र में क्या है.
ऐसे पहचानें ऑटिज्म
बच्चे की उम्र के हिसाब से अगर उनकी बौद्धिक व मासिक विकास न दिखे तो बच्चा पलटने व चलने में असहज हो बोलने में दिक्कत आए तो अभिववाक को सजग हो जाने की जरुरत है. ऑटिज्म के इलाज में एक टीम काम करती है. इसमें से शिशु न्यूरोलॉजिस्ट,शिशु रोग विशेषज्ञ, इएनटी, हड्डी विशेषज्ञ इलाज करते हैं. ऐसे में जितनी जल्दी आप समस्या का इलाज करवाते हैं उतनी ही जल्दी आप इससे निवारण पाएँगे.