नदियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा खतरा, तपती धूप में जीव जानवर को नहीं हो रही पानी नसीब
शैलेश/न्यूज़11 भारत
चतरा/डेस्क: नदियों का जल संरक्षण में अहम योगदान होता है. नदियों का मानव सभ्यता के विकास में सबसे अहम योगदान रहा. इतिहास में जितनी भी सभ्यताओं के उल्लेख मिलते हैं, सभी का विकास नदियों के किनारे ही हुआ, लेकिन आज हम विकास की अंधी दौड़ में इन नदियों के अस्तित्व के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. नदियों का संरक्षण करने के बजाय इन पर जुल्म ढाया जा रहा है. इसमें कंपनियों के अधिकारी साथ-साथ शासन-प्रशासन भी शामिल है. नतीजा नदियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है. बड़ी नदियां नाले का रूप ले ली हैं तो छोटी नदियां मैदान बन गई हैं. नदियों के सिमटने से पर्यावरण पर भी गहरा असर पड़ रहा है.
टंडवा एनटीपीसी मगध आम्रपाली से गुजरनेवाली नदियों का भी यही हाल है. आपको बता दे चतरा जिले के टंडवा प्रखंड क्षेत्र से होकर गुजरने वाली राहम नदी एक तो अस्तित्व के संकट से गुजर रही है. उस पर से नदी में टंडवा एनटीपीसी प्लांट के कोयले का पानी छोड़ने से स्थिति और भी भयावह होती जा रही है. मालूम हो कि एनटीपीसी प्लांट से बिजली की उत्पादन में कोयले को कार्य तेजी से चल रहा है. प्लांट से कोयले के गंदी जहरीला पानी निकाल कर नदी में ही बहाया जा रहा है. जिससे पूरी तरह से नदी का पानी काला हो गया. यह बेहद गंभीर मामला हैं.
जलीय जीवों की मौत का कारण बन सकता है कोयले का काला पानी
इस संबंध में प्रदूषण निजात संघ समिति के अध्यक्ष रवि सिंह ने बताया कि कोयले के पानी का नदी में बहना काफी चिंताजनक है. यह नदी में रहने वाले जलीय जीवों की मौत का कारण बन सकता है. पीएच, आर्सेनिक, आयरन और हैवी मेटल की मात्रा बढ़ जाएगी. मछलियों में स्वसन दर बढ़ जाएगा. जिससे उनपर प्रतिकूल प्रभाव बढ़ जाएगा.
इससे नदी के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा. पानी का गुण रंगहीन, स्वादहीन और गंधहीन होता है. ऐसे में यह जल प्रदूषण का बड़ा गंभीर मामला है. जिसके आस-पास सौकड़ों गांव और लाखों लोग निवास करते हैं. ऐसे में ना ये नदी के साथ किया गया गंभीर खिलवाड़ है बल्कि जलीय जीवों, जानवरों और मनुष्यों के स्वास्थ्य पर भी इसका गंभीर प्रभाव देखने को मिल सकता है. उपचारित पानी को ही नदी में छोड़ना चाहिए.