आशीष शास्त्री/न्यूज़11 भारत
सिमडेगा/डेस्क: आदिवासी बहुल जिला सिमडेगा में अब ग्रामीण परिवेश की महिलाएं भी सशक्त बन कर मिसालें पेश करने लगी हैं. कल तक गांव की जो महिलाएं घर की चारदीवारी के अंदर रहकर गांव की शराबी परिवेश का दंश झेलती थी. आज उन्हीं महिलाओं के द्वारा प्राकृतिक विधि से तैयार की जा रही हर्बल गुलाल की खुशबू महिलाओं की जिंदगी और ग्रामीण परिवेश में बदलाव के रंग बिखेर रही हैं. ये बदलाव महिला सशक्तिकरण का बड़ा उदाहरण बनने लगी हैं. सिमडेगा की ग्रामीण महिलाएं गांव में बदलाव लाने लगी. गांव की महिलाएं सशक्त हो रही. नारी कभी हारती नहीं है उसे हराया जाता है, समाज क्या कहेगा यह कहकर बचपन से डराया जाता हैं. नहीं तो नारी क्या कर गुजरती है ये मिशाल सिमडेगा में नजर आया. जहां महिला सशक्तिकरण के ने ना सिर्फ गांव के संस्कार बदले बल्कि गांव के प्रगति के रास्ते भी प्रशस्त किए.
सिमडेगा जिले में नारी सशक्तिकरण की मिसाल पेश करती हुई ठेठईटांगर प्रखंड के चांदनी आजीविका स्वयं सहायता समूह एवं पाकरटांर के विकास आजीविका स्वयं सहायता समूह सहित बानो प्रखंडों के महिला समूह द्वारा प्राकृतिक विधि से हर्बल गुलाल तैयार किया जा रहा हैं. प्राकृतिक गुलाल बनाने के लिए इन महिलाओं द्वारा पलाश के सूखे फूलों का प्रयोग किया जाएगा. इससे ये लाल रंग की गुलाल तैयार कर रही हैं.
वहीं हरा रंग का गुलाल बनाने के लिए सूखा हुआ पालक साग, गुलाबी रंग का गुलाल बनाने के लिए चुकंदर, पीला रंग का गुलाल बनाने लिए हल्दी एवं गेंदा फूल का प्रयोग किया जा रहा हैं. जो पूर्ण रूप से प्राकृतिक हैं. इस प्रकार के गुलाल त्वचा को किसी भी प्रकार से नुकसान नही पहुंचता. दरअसल ग्रामीण परिवेश में पिछड़ेपन और नशे के माहौल का दंश झेलने वाली इन महिलाओं को सरकार के जेएसएलपीएस का साथ मिला, तो इन महिलाओं ने भी गांव की महिलाओं के साथ मिलकर एक समूह बना लिया इसके बाद ये अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति और हौसलों के बदौलत कामयाबी की इबारत लिखने लगी. त्योहारों के अनुरूप ये अपना व्यवसाय करने लगी. अभी होली का त्यौहार है तो ये महिला समूह पिछले कई दिनों से जंगल जंगल घूमकर पलाश के फूलों को इकठ्ठा करने लगी. पालक साग और गेंदा फूल की खेती की. इसके बाद अरारोट की सहायता से ये महिलाएं होली के लिए बिल्कुल प्राकृतिक तरीके से गुलाल बनाने में जुट गई. समूह की दीदियों का गुलाल बनाने का उत्साह होली पर्व के उमंग को और दुगना कर रहा हैं. जिले में लगभग 200 किलो ग्राम का प्राकृतिक गुलाल तैयार किया जा रहा हैं. जिसे पलाश ब्रांड की पैकेजिंग की जा रही हैं. दिवाली में यही महिलाएं फूलों का माला बनकर बाजार में बेचती हैं. गांव की परिवेश में घर में बंद ये महिलाएं अब अपने हौसलों के बल पर एक उद्यमी महिलाएं बनने लगी हैं.

पलाश मार्ट के जरिए इन महिलाओं को इस गुलाल के बाजार भी प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे हैं. ये महिलाओं का सशक्तिकरण का ही परिणाम है कि अब वे आम ही नहीं, बल्कि गुठलियों के दाम भी निकालने की तरकीब ढूंढ ली हैं. सामूहिक पहल से महिलाएं न सिर्फ खुद को सशक्त बना रहीं हैं, बल्कि वे अन्य महिलाओं के लिए नजीर बनी हैं. दरअसल बदलाव की ये बानगी एक दिन का परिणाम नहीं, बल्कि आदिवासी महिलाओं को महीनों व सालों का मेहनत का नतीजा हैं. महिलाओं के इन प्रयासों को काफी सराहना भी मिलने लगी हैं. जो महिलायें अपनी शक्ति को पहचान लेती हैं. वही इतिहास रचती हैं और सफलता उनके कदम चूमती हैं. समूह की उद्यमी दीदियों के द्वारा इस प्रकार का प्रयास अन्य के लिये प्रेरणा का स्त्रोत एवं महिला सशक्तिकरण के लिए निश्चय ही मिल का पत्थर साबित होगा.